नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) पर सख्त टिप्पणियां करते हुए कहा कि वह कानून की धज्जियां उड़ाने वालों की तरह काम नहीं कर सकता। उसका आचरण कानून के दायरे में होना चाहिए। न्यायमूर्ति सूर्य कांत, न्यायमूर्ति उज्ज्ल भुयान और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कांग्रेस सांसद कार्ति पी. चिदंबरम और अन्य द्वारा दायर कई पुनर्विचार याचिकाओं की विचारणीयता पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां कीं।
पीठ ने बहुत कम दोषसिद्धि के लिए ईडी की भी आलोचना की और संसद में एक मंत्री द्वारा दिए गए बयानों हवाला देते हुए पूछा, “5,000 मामलों के बाद, 10 से भी कम दोषसिद्धि। क्यों? हम ईडी की छवि को लेकर भी उतने ही चिंतित हैं।” शीर्ष अदालत ने कहा कि वह एजेंसी की छवि को लेकर चिंतित है। कानून प्रवर्तन एजेंसियों और उसका उल्लंघन करने वालों के बीच अंतर है।
इस पर ईडी की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने कहा कि प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लांड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) मामलों में दोषसिद्धि की कम दर का एक कारण यह है कि “अमीर और ताकतवर लोग वकीलों की एक शक्तिशाली समूह से कानूनी मदद लेते हैं। वे ढेर सारी याचिकाएँ दायर करते हैं।”
राजू आगे कहा कि ये आरोपी मुकदमे को चलने ही नहीं देते और उसमें देरी करते हैं। उन्होंने याचिकाओं को खारिज करने की मांग की क्योंकि ये वास्तव में पुनर्विचार याचिकाओं के रूप में गोपनीय अन्य चीज हैं। उन्होंने कहा, “अगर पुनर्विचार याचिका स्वीकार कर ली जाती है, तो यह 'विजय मदनलाल' के फैसले को फिर से लिखने के समान होगा, जिसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।”
उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा 2022 के फैसले की समीक्षा की मांग करने का कोई आधार नहीं बनाया गया है। गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने 31 जुलाई को कहा था कि वह सबसे पहले जुलाई 2022 के फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली इन याचिकाओं की विचारणीयता के मसले पर संबंधित पक्षों की दलीलें सुनेगा।
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