Supreme Court quashes case: सुप्रीम कोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी लक्ष्य सेन के खिलाफ दर्ज मुकदमा रद्द किया

Mon, Jul 28 , 2025, 09:25 PM

Source : Uni India

नयी दिल्ली।  उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने जानेमाने अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी लक्ष्य सेन (Lakshya Sen) और अन्य के खिलाफ जन्म प्रमाण पत्र में हेराफेरी करने के आरोप में दर्ज आपराधिक कार्यवाही और मुकदमा सोमवार को रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया (Sudhanshu Dhulia) और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने आरोपियों में शामिल सेन के अलावा उनके भाई, माता-पिता और एक कोच को भी राहत दी। पीठ ने पाया कि नागराजा एम जी की ओर से दायर की गई शिकायत में ‘बदले की भावना स्पष्ट रूप से दिखती है’ और इसकी वजह यह कि उनकी बेटी को 2020 में अकादमी में प्रवेश देने से मना कर दिया गया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता, विशेष रूप से चिराग और लक्ष्य, राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हैं। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन टूर्नामेंटों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों और बीडब्ल्यूएफ अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में पदक सहित कई पुरस्कार प्राप्त किए हैं।

पीठ ने कहा, “ऐसे व्यक्तियों को, जिन्होंने बेदाग रिकॉर्ड बनाए रखा और निरंतर उत्कृष्टता के माध्यम से देश के लिए प्रतिष्ठा अर्जित की है, प्रथम दृष्टया साक्ष्य के अभाव में आपराधिक मुकदमे की कठिन परीक्षा से गुजरने के लिए मजबूर करना न्याय के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं करेगा। ऐसी परिस्थितियों में आपराधिक कानून का सहारा लेना प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, जिसे यह अदालत बर्दाश्त नहीं कर सकती।”
शीर्ष अदालत ने कहा कि प्राथमिकी 2022 में एक न्यायिक मजिस्ट्रेट के निर्देश पर बेंगलुरु के हाई ग्राउंड्स पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई थी, जबकि इसी मामले की पहले ही भारतीय खेल प्राधिकरण और भारत सरकार के अधीन एक प्रमुख सत्यनिष्ठा संस्थान, सीवीसी सहित कई अधिकारियों द्वारा जाँच की जा चुकी थी। जांच के बाद मामले को बंद कर दिया गया था। पीठ ने कहा, “शिकायत में विलंब, नए सबूतों का अभाव और स्पष्ट व्यक्तिगत द्वेष सामूहिक रूप से शिकायत की प्रामाणिकता को कमजोर करते हैं।”

पीठ ने अपीलकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखना पूरी तरह से अनुचित मानते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय के 19 फरवरी, 2025 के आदेश के खिलाफ अपील स्वीकार कर ली। उच्च न्यायालय ने एक दिसंबर, 2022 को दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की याचिका खारिज कर दी थी। शिकायतकर्ता ने अपने आरोपों की पुष्टि के लिए लक्ष्य के पिता द्वारा भरे गए 1996 के जीपीएफ फॉर्म का हवाला दिया। उन्होंने तर्क दिया कि संस्थागत दोषमुक्ति आपराधिक जांच को नहीं रोकती है। उक्त अधिकारियों द्वारा किए गए चिकित्सा आयु आकलन निर्णायक नहीं थे और जो जांच की जा सकती है, उससे सच्चाई सामने आ जाएगी। अपीलकर्ताओं का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता सी. ए. सुंदरम और अधिवक्ता रोहिणी मूसा ने रखा। उन्होंने ने तर्क दिया कि यह शिकायत प्रक्रिया के दुरुपयोग का एक आदर्श उदाहरण है, जो व्यक्तिगत द्वेष से प्रेरित है और पूरी तरह से क़ानून से परे कारणों से अपीलकर्ताओं को परेशान करने के लिए रची गई है।

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