नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने बुधवार को कहा कि शिकायतकर्ता का केवल अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति वर्ग (Scheduled Tribe category) का होना ही इससे संबंधित कड़े अधिनियम के तहत अभियोजन का आधार नहीं हो सकता। मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के 2014 के उस फैसले के खिलाफ कोंडे नागेश्वर राव की ओर से दायर अपील को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं।
दोनों उच्च न्यायालयों के संबंधित फैसले में एससी/ एसटी (SC/ST)से संबंधित विशेष कानून के तहत दो व्यक्तियों के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया गया था। शीर्ष अदालत ने 13 पन्नों के फैसले में कहा कि केवल इसलिए कि शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति वर्ग से संबंधित है, कड़े अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अभियोजन का एकमात्र आधार नहीं हो सकता। पीठ ने मासुम्शा हसनशा मुसलमान बनाम महाराष्ट्र राज्य (2000) के पिछले फैसले का हवाला देते हुए कहा कि व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने या व्यक्तियों को परेशान करने के लिए कानून का दुरुपयोग, यदि स्पष्ट हो, तो अनुमति नहीं दी जा सकती।
रविंदर सिंह बनाम सुखबीर सिंह एवं अन्य (2013) का भी हवाला देते हुए पीठ ने रेखांकित किया कि ऐसी स्थिति में अदालत को हस्तक्षेप करने और उक्त दुरुपयोग को रोकने में संकोच नहीं करना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा, “अभियोजन पक्ष के मामले में स्पष्ट कानूनी कमज़ोरी होने पर अभियुक्तों के अनुचित उत्पीड़न को रोकने के लिए अभियोजन पक्ष को प्रारंभिक चरण में ही रद्द कर दिया जाना चाहिए।” शीर्ष अदालत ने वर्तमान मामले में उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि चूंकि मुख्य मंशा ही स्पष्ट नहीं थी, इसलिए जिन अपराधों के लिए अभियोजन शुरू किया गया था, वे सिद्ध नहीं हुए।
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Wed, Jul 23 , 2025, 10:29 PM