Shravan 2025: श्रावण मास में मांसाहारी भोजन वर्जित क्यों है? जानिए धार्मिक या वैज्ञानिक कारण, या है कोई स्वास्थ्य संबंधी कारण ?

Tue, Jul 22 , 2025, 01:00 PM

Source : Hamara Mahanagar Desk

Food Prohibited in Shravan: भारतीय संस्कृति में श्रावण मास (Shravan month) को अत्यंत पवित्र माना जाता है। हरियाली, वर्षा और भक्ति के इस मौसम में, भोजन से जुड़ी कुछ मान्यताएँ भी बेहद खास हैं। अक्सर लोग इस महीने में मांस-मछली जैसे तामसिक खाद्य पदार्थों (tamasic foods) से दूर रहते हैं। लेकिन ऐसा क्यों है? क्या इसका कोई वैज्ञानिक कारण है या यह केवल धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा है? इस विषय पर आयुर्वेदिक चिकित्सकों के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। जिनमें वे कहते हैं कि श्रावण में मांसाहारी भोजन (non-vegetarian food) न करने के पीछे न केवल धार्मिक, बल्कि गंभीर वैज्ञानिक और स्वास्थ्य संबंधी कारण भी हैं। आइए विस्तार से जानते हैं।

श्रावण मास में मांसाहारी भोजन वर्जित क्यों है?
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो के अनुसार, आयुर्वेदिक डॉक्टर बताते हैं कि श्रावण मास भगवान शिव (dedicated to Lord Shiva) को समर्पित माना जाता है। यह महीना आस्था, भक्ति, संयम और पवित्रता का प्रतीक है। इस दौरान लोग व्रत रखते हैं, पूजा-पाठ करते हैं और सात्विक जीवनशैली अपनाते हैं। मांस-मछली जैसे तामसिक भोजन शरीर में उत्तेजना और अशुद्धि बढ़ाते हैं, जिससे मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता में बाधा आती है।

तामसिक भोजन मन को कैसे प्रभावित करते हैं?
आयुर्वेदाचार्य कहते हैं कि आयुर्वेद के अनुसार, भोजन को तीन भागों में विभाजित किया गया है - सात्विक, राजसिक और तामसिक। सात्विक भोजन शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है और मन को शांत व शुद्ध भी करता है, जबकि मांस-मछली जैसे तामसिक भोजन नकारात्मक भावनाओं, क्रोध और आलस्य को बढ़ाते हैं। इसलिए, श्रावण के पवित्र महीने में तामसिक भोजन का त्याग करके सात्विक भोजन करना न केवल स्वास्थ्य के लिए, बल्कि मन और आत्मा की शुद्धि के लिए भी आवश्यक माना जाता है।

धार्मिक महत्व
धार्मिक दृष्टि से, श्रावण मास भगवान शिव की आराधना का विशेष समय है। इस महीने में व्रत, रुद्राभिषेक और शिव पूजा का विशेष महत्व है। कई मान्यताओं के अनुसार, तामसिक भोजन करने से तन और मन की पवित्रता नष्ट होती है, जिससे पूजा का पूरा लाभ नहीं मिल पाता।

वर्षा ऋतु में मांस खाना क्यों हानिकारक है? इसका वैज्ञानिक कारण क्या है?
दूसरे शब्दों में, श्रावण का महीना वर्षा ऋतु और आर्द्र होता है। इस मौसम में वातावरण में नमी के कारण फंगल संक्रमण और बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है। मांसाहारी भोजन जैसे मांसाहारी भोजन जल्दी खराब हो सकता है और फंगल या जीवाणु संक्रमण का खतरा अधिक होता है। विभिन्न आयुर्वेदिक चिकित्सकों के अनुसार, मानसून के दौरान नदियाँ और झीलें जैसे जल स्रोत भी प्रदूषित हो जाते हैं। इन जलस्रोतों में रहने वाली मछलियाँ भी दूषित हो सकती हैं, जिनमें हानिकारक विषाक्त पदार्थ हो सकते हैं।

क्या भारी भोजन पचने में ज़्यादा समय लगता है?
आयुर्वेद के अनुसार, इस मौसम में पाचन क्रिया धीमी हो जाती है, जिससे भारी भोजन पचने में ज़्यादा समय लगता है। मानसून में शरीर की पाचन शक्ति कमज़ोर हो जाती है। मांसाहारी भोजन बहुत भारी और वसायुक्त होता है, जिसे पचाना सामान्य से ज़्यादा मुश्किल होता है। इसका सीधा असर हमारे पेट, लिवर और प्रतिरक्षा प्रणाली पर पड़ता है।

क्या संक्रमण का ख़तरा कई गुना बढ़ जाता है?
मानसून के दौरान, नमी और बारिश के कारण वातावरण में रोगाणुओं की संख्या तेज़ी से बढ़ जाती है, जिसका सीधा असर हमारे खान-पान पर पड़ता है। ख़ासकर मांसाहारी भोजन जैसे मांसाहारी भोजन में बैक्टीरिया तेज़ी से पनपते हैं। मानसून में जल जनित बीमारियों का ख़तरा भी बढ़ जाता है, जिससे मछली और समुद्री भोजन खाने से संक्रमण और बीमारी की संभावना बढ़ जाती है। दूषित मांस या समुद्री भोजन खाने से फ़ूड पॉइज़निंग, उल्टी-दस्त, पेट दर्द और बुखार जैसी समस्याएँ हो सकती हैं। इसलिए, श्रावण मास में शुद्ध, हल्का और पौष्टिक शाकाहारी भोजन करने की सलाह दी जाती है, ताकि शरीर स्वस्थ रहे और प्रतिरक्षा प्रणाली भी मज़बूत रहे।

 

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