Mahabharata : कर्ण ने इंद्रदेव को कवच कुंडल दिया था, लेकिन बाद में उसका क्या हुआ?

Wed, Jul 16 , 2025, 09:35 PM

Source : Hamara Mahanagar Desk

Mahabharat Story : कर्ण सूर्य देव के पुत्र हैं। कहा जाता है कि उनका जन्म कुंती के विवाह से पूर्व दुर्वासा ऋषि द्वारा दिए गए मंत्र से हुआ था। कर्ण को सूर्य देव (Sun God to Karna) से दिव्य कवच कुंडल प्राप्त हुआ था। जिसके कारण कोई भी उन्हें हानि नहीं पहुँचा सकता था। कर्ण जितने महान योद्धा और धनुर्धर थे, उतने ही महान दानवीर भी थे। दानवीर कर्ण ने सूर्य देव से कवच कुंडल प्राप्त किया था। इंद्रदेव ने छल से उसे उनसे उपहार स्वरूप प्राप्त कर लिया, लेकिन वे उसे अपने साथ स्वर्ग नहीं ले जा सके। कहा जाता है कि यह आज भी विद्यमान है।

एक दिन कर्ण स्नान करके सूर्य देव की पूजा (worshiping Sun God) कर रहे थे। पूजा समाप्त होते ही इंद्रदेव ब्राह्मण का रूप धारण करके आए और कर्ण से कवच कुंडल मांग लिए। कहा जाता है कि उनके द्वार से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता था, चाहे कैसी भी परिस्थिति क्यों न हो। जो कोई भी उनसे कुछ माँगता था, उसे मिल जाता था।

महाभारत युद्ध से पहले, भगवान इंद्र को डर था कि अगर उनका पुत्र अर्जुन कर्ण से युद्ध करेगा, तो कर्ण उसे हरा देगा। इसलिए, उन्होंने उनसे उनका कवचकुंडल दान में माँगा था। कर्ण ने भी उसे अस्वीकार नहीं किया। बिना कुछ सोचे-समझे, कर्ण ने अपना कवचकुंडल भगवान इंद्र को दान कर दिया। अगर इंद्र ने कर्ण को धोखा देकर उससे कवचकुंडल न छीना होता, तो महाभारत युद्ध में कर्ण को हराना और भी मुश्किल हो जाता।

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