Jellyfish Parenting: जेलीफ़िश पेरेंटिंग' क्या है? क्या यह बच्चों के विकास के लिए फायदेमंद है ये नया तरीका! जानें सब कुछ

Fri, Jul 11 , 2025, 08:58 PM

Source : Hamara Mahanagar Desk

What is jellyfish parenting: आजकल कई माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश में एक बड़ी चुनौती का सामना करते हैं कि कौन सा तरीका अपनाएँ। यह तय करना मुश्किल होता है कि उन्हें अनुशासित करें या आज़ादी दें। ऐसे में, 'जेलीफ़िश पेरेंटिंग' नामक एक नया पेरेंटिंग मॉडल चर्चा (a new parenting model called) में आया है। ख़ास तौर पर पश्चिमी देशों में शुरू हुआ यह तरीका अब भारत में भी अपनाया जा रहा है। लेकिन यह समझना ज़रूरी है कि आख़िर यह तरीका क्या है और क्या यह आपके बच्चों के लिए फायदेमंद (Beneficial for children) होगा या नहीं।

जेलीफ़िश पेरेंटिंग क्या है?

'जेलीफ़िश' का मतलब समुद्र में रहने वाला एक नाज़ुक और कोमल जीव होता है। इसी नाम से बनी इस पेरेंटिंग शैली में माता-पिता बहुत ही कोमल होते हैं, बच्चों पर ज़्यादा पाबंदियाँ नहीं लगाते और उन्हें पूरी आज़ादी देते हैं। इस तरीके में बच्चों को अपने अनुभवों से सीखने का मौका दिया जाता है। अनुशासन की बजाय खुलेपन, आदेशों की बजाय संवाद और मार्गदर्शन पर ज़ोर दिया जाता है।

इसके क्या फ़ायदे हैं?

यह तरीका बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाता है। यह तरीका बच्चों को अपने फैसलों पर भरोसा करना सिखाने में मददगार है। माता-पिता और बच्चों के बीच का रिश्ता मज़बूत होता है, क्योंकि बच्चे अपने विचार और भावनाएँ खुलकर साझा करते हैं। इससे बच्चों के संवाद कौशल में भी सुधार होता है और उन्हें भावनात्मक सहारा मिलता है।

इसके क्या नुकसान हैं?

हालाँकि ज़्यादा आज़ादी देने का विचार अच्छा लगता है, लेकिन इसके कुछ नुकसान भी साफ़ तौर पर सामने आते हैं। ऐसे में बच्चों में अनुशासन की भावना कम हो जाती है। निर्णय लेने की क्षमता में अनिश्चितता आ जाती है। वे ज़िम्मेदारी स्वीकार करने के आदी नहीं होते। कई बार बच्चे माता-पिता की सीमाओं का उल्लंघन करते हैं और गलत व्यवहार करते हैं। इससे भविष्य में सामाजिक मेलजोल में भी उन्हें दिक्कत हो सकती है।

क्या सोचें?

पालन-पोषण एक सतत सीखने की प्रक्रिया है। जेलीफ़िश पालन-पोषण द्वारा दी जाने वाली आज़ादी भले ही आकर्षक लगे, लेकिन इसके लिए उचित सीमाओं और मूल्यों की भी आवश्यकता होती है। बच्चों को निर्णय लेने की आज़ादी देने के साथ-साथ उनमें अनुशासन, ज़िम्मेदारी और सही-गलत की समझ पैदा करना भी उतना ही ज़रूरी है।

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