Rules of Shaligram worship: आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। इस वर्ष देवशयनी एकादशी 6 जुलाई को है। इस दिन शालिग्राम पूजा (Shaligram worship) का विशेष महत्व बताया गया है। आइए जानते हैं शालिग्राम पूजा का क्या महत्व है..
आषाढ़ी एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु निद्रा में चले जाते हैं। इसलिए इसे देवशयनी एकादशी कहते हैं। अगले चार महीने यानी कार्तिक एकादशी तक भगवान विष्णु निद्रा (Lord Vishnu sleep) में रहेंगे। आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) के नाम से जाना जाता है। इस दिन से अगले चार महीने तक शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित हो जाते हैं। चार महीने बाद देवउठनी एकादशी से शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं।
देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु और शालिग्राम की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। देवशयनी एकादशी पर शालिग्राम पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराएं। गंगाजल से अभिषेक करें। साथ ही पीले वस्त्र अर्पित करें। शालिग्राम का श्रृंगार करें। फूल, फल, धूप, कपूर और नैवेद्य अर्पित करें। आरती करके पूजा समाप्त करें। शालिग्राम को भोग लगाने से पहले तुलसी के पत्ते अवश्य रखें। क्योंकि तुलसी के पत्तों के बिना शालिग्राम की पूजा अधूरी मानी जाती है। इसका विशेष ध्यान रखें। शालिग्राम को अपने मंदिर में स्थापित करें। शालिग्राम की पूजा नियमित रूप से करनी चाहिए। इतना ही नहीं, शालिग्राम की उचित देखभाल भी करनी चाहिए। शालिग्राम को भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है।
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Thu, Jun 26 , 2025, 09:49 PM