Bulldozer Condemnation: ओडिशा हाईकोर्ट ने बुलडोजर न्याय की कड़ी निंदा की!

Wed, Jun 25 , 2025, 09:10 PM

Source : Uni India

भुवनेश्वर। उड़ीसा उच्च न्यायालय (Orissa High Court) ने तहसीलदार स्तर के एक अधिकारी द्वारा सामुदायिक भवन गिराए जाने पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए याचिकाकर्ताओं को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। न्यायालय की एकल पीठ के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ एसके पाणिग्रही (Dr SK Panigrahi) ने अपने आदेश में कहा कि “कानून द्वारा संचालित व्यवस्था में बल का उपयोग तर्क के बाद होना चाहिए, न कि तर्क से पहले। जब इसके विपरीत होता है तो राज्य की कार्रवाई की वैधता खत्म होने लगती है और इसके साथ ही कानून के शासन को बनाए रखने वाले संस्थानों की विश्वसनीयता भी खत्म हो जाती है।”

न्यायालय ने कहा कि इस मामले के तथ्य एक बढ़ते और परेशान करने वाले चलन को दर्शाते हैं जिसे आमतौर पर ‘बुलडोजर न्याय’ के रूप में जाना जाता है। इसके तहत मशीनरी समर्थित कार्यकारी शक्ति तर्क को धता बताते हुए कानूनी प्रक्रिया को दबा देती है। प्रक्रियात्मक अनुपालन और न्यायिक अंतिमता की अनुपस्थिति में प्रवर्तन के उपकरण के रूप में विध्वंस का उपयोग एक वैध कार्य को बलपूर्वक बदल देता है”। अवैध रूप से इमारत गिराए जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए न्यायमूर्ति पाणिग्रही ने कहा कि तहसीलदार का कार्यालय केवल एक प्रशासनिक पद नहीं है। यह एक ऐसा पद है जो संवैधानिक जिम्मेदारी का भार वहन करता है विशेषकर जब बात जमीनी स्तर पर कानून लागू करने की हो।

न्यायालय ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यदि इस तरह के "बुलडोजर न्याय" (bulldozer justice) को अनदेखा किया गया तो यह एक खतरनाक मिसाल कायम कर सकता है। इस कारण से महत्वपूर्ण वैधानिक शक्तियों से लैस क्षेत्र-स्तरीय अधिकारी न्यायिक समयसीमा को प्रशासनिक अंतराल के रूप में देखना शुरू कर इसका चतुराई से फायदा उठा सकते है।

तहसीलदार ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन किए बिना संरचना को ध्वस्त करने में अनुचित जल्दबाजी दिखाई है। न्यायालय ने कहा कि विध्वंस से पहले अनिवार्य प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय नहीं किए गए थे और इस तरह की कार्रवाई को रोकने वाले मौजूदा न्यायिक आदेशों के बावजूद इसे अंजाम दिया गया। न्यायालय ने अपने आदेश में "पुनर्निर्माण की लागत, हुए नुकसान और प्रशासनिक कदाचार की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए मुआवजे का आकलन 10,00,000 रुपये किया। इसमें से 2,00,000 रुपये संबंधित तहसीलदार से वसूल किए जाएंगे। 


यह गैरकानूनी कार्य करने में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी को देखते हुए उनके वेतन से उचित किश्तों में काटे जाएंगे। न्यायालय ने राजस्व अधिकारी के खिलाफ भी उचित विभागीय कार्यवाही के निर्देश जारी करते हुए आदेश दिया कि “राज्य द्वारा याचिकाकर्ता को शेष 8,00,000 रुपये का भुगतान इस आदेश की प्रस्तुति की तारीख से आठ सप्ताह की अवधि के भीतर किया जाए।”

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