Pandharpur Prasad: आषाढ़ी वारि के दौरान लाखों वारकरी पंढरपुर (Warkaris visit Pandharpur) आते हैं। विठुराया शहर में वारकरी और भक्त प्रसाद के रूप में चूरमुरे, बतासे और फुटाने खरीदते हैं और घर ले जाते हैं। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है। लेकिन, भक्त प्रसाद के रूप में चूरमुरे, बतासे और फुटाने ही क्यों खरीदते हैं? सोलापुर के सुधाकर इंगले महाराज ने इस संदर्भ में अधिक जानकारी दी। आषाढ़ी वारि के दौरान लाखों वारकरी पंढरपुर आते हैं।
विट्ठल रुक्मिणी (Vitthal Rukmini) के दर्शन करके घर जाते समय भक्त चूरमुरे का प्रसाद लेते हैं। घर ले जाए गए प्रसाद को चार पड़ोसी घरों और रिश्तेदारों को देने की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है। पंढरी में आने वाले श्रद्धालु गरीब किसान और अन्य मजदूर परिवारों से होते हैं। इसलिए गरीब से गरीब श्रद्धालु भी चूरमुरे, बतासे और फुटानी का प्रसाद खरीद सकते हैं। चूरमुरे आसानी से मिल जाते हैं। वजन में हल्के और टिकाऊ होते हैं।
कीमत में भी सस्ते होते हैं, ऐसा इंगले महाराज कहते हैं। भक्त पंढरी से प्रसाद के रूप में सिर्फ चूरमुरे, बतासे और पेड़ा ही नहीं लेते। चाहे वह तुलजाभवानी मंदिर हो, शनि शिंगणापुर हो, कोल्हापुर हो या कोई अन्य तीर्थ स्थल हो, वहां प्रसाद के रूप में चूरमुरे और बतासे खरीदकर घर ले जाने की प्रथा है। पंढरपुर आने वाले वारकरी और श्रद्धालु महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, गुजरात के साथ-साथ देश के कोने-कोने से, वाड़ी बस्तियों से आते हैं। इंगले महाराज कहते हैं कि यह प्रसाद उन सभी के लिए सुविधाजनक, सस्ता और टिकाऊ विकल्प है।
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Wed, Jun 25 , 2025, 03:08 PM