नयी दिल्ली.विशेषज्ञों का कहना है कि यूरिया के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल से है मिट्टी, फसल और इंसान की सेहत को खतरा है। इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (ICRIER) के एग्रीकल्चर पॉलिसी, सस्टेनेबिलिटी एंड इनोवेशन (APSI) प्रकोष्ट द्वारा आज यहां आयोजित ‘बेहतर फसल और मानव पोषण के लिए मिट्टी की सेहत को सुधारने’ विषय पर परिचर्चा में विशेषज्ञों (Experts) ने यह बता कही। इस परिचर्चा का उद्देश्य भारत में मिट्टी की सेहत से जुड़ी मौजूदा चुनौतियों और उसके खाद्य एवं पोषण सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभावों पर ध्यान केंद्रित करना था। इसमें विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों और उद्योग जगत के विशेषज्ञों ने भाग लिया। इसमें यह बात सामने आई कि अत्यधिक सब्सिडी वाले यूरिया का अंधाधुंध इस्तेमाल मिट्टी की उर्वरता को नुकसान पहुंचा रहा है और साथ ही जल स्रोतों को भी प्रदूषित कर रहा है, जिससे खेती की स्थिरता और जनस्वास्थ्य दोनों खतरे में हैं।
चर्चा में प्रतिभागियों ने 1960 के दशक में ‘शिप-टू-माउथ’ अर्थव्यवस्था से निकलकर भारत के दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक बनने की यात्रा पर चर्चा की और इस बदलाव से पर्यावरण को हुए नुकसान को भी स्वीकार किया। विशेषज्ञों ने बताया कि वर्षों से यूरिया जैसे सस्ते नाइट्रोजन उर्वरकों के बेहिसाब उपयोग से मिट्टी की गुणवत्ता गिरी है, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी आई है, जल स्रोत प्रदूषित हुए हैं और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ा है। जबकि भारत सरकार हर साल 22 अरब डॉलर से अधिक की उर्वरक सब्सिडी देती है, फिर भी केवल 35 से 40 प्रतिशत नाइट्रोजन ही फसलों द्वारा ग्रहण की जाती है और बाकी पर्यावरण में बर्बाद हो जाती है, जिससे उत्पादकता और मिट्टी की सेहत पर असर पड़ता है।
इस चर्चा में मौजूद विशेषज्ञों ने मिट्टी की सेहत और मानव पोषण के बीच सीधे संबंध को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि जिंक की कमी वाली मिट्टी बच्चों में अवरुद्ध वृद्धि (स्टंटिंग) का एक प्रमुख कारण बनती है और यह देश की दीर्घकालिक आर्थिक क्षमता के लिए भी एक खतरा है। बैठक में यह सहमति बनी कि मिट्टी की सेहत को फिर से बहाल करना केवल पैदावार बढ़ाने के लिए ही नहीं, बल्कि भोजन की पोषण गुणवत्ता सुधारने और आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य व विकास को सुरक्षित करने के लिए भी जरूरी है।
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Mon, Jun 02 , 2025, 06:22 PM