मुंबई: कोविड-19 महामारी (COVID-19 pandemic) के दौरान कई लोगों की जान चली गई और कई लोगों ने अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता खो दी है। इसके बाद धीरे-धीरे लोगों को इसके दुष्प्रभाव महसूस होने लगे। लोगों में श्वसन संबंधी बीमारियाँ भी विकसित होने लगी हैं। इस अवधि के दौरान कई बच्चों का जन्म हुआ है। ऐसे में सवाल उठता है कि इन शिशुओं की प्रतिरक्षा प्रणाली कैसी होगी?
एक शोध के अनुसार इस संबंध में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। लॉकडाउन के दौरान पैदा हुए शिशुओं के बीमार होने की संभावना बहुत कम होती है और उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली अन्य समय में पैदा हुए शिशुओं की तुलना में अधिक मजबूत होती है। आयरलैंड के यूनिवर्सिटी कॉलेज कॉर्क के शोधकर्ताओं का मानना है कि लॉकडाउन के दौरान पैदा हुए शिशुओं का आंत माइक्रोबायोम अन्य शिशुओं से बहुत अलग है। इस अंतर के कारण, इन शिशुओं में एलर्जी संबंधी समस्याएं अपेक्षाकृत दुर्लभ हैं।
एनआईएच के अनुसार, स्वस्थ आंत माइक्रोबायोटा कई सकारात्मक कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जैसे भोजन के अपचनीय घटकों के चयापचय से ऊर्जा प्राप्त करना, संक्रमणों से सुरक्षा और प्रतिरक्षा प्रणाली का मॉड्यूलेशन। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि कोविड काल में पैदा हुए केवल 5% शिशुओं में एलर्जी की समस्या थी, जबकि पहले यह दर 22.8% थी। इसी प्रकार, इनमें से केवल 17% शिशुओं को ही एक वर्ष के भीतर एंटीबायोटिक्स मिल पाईं, जबकि पहले यह दर 80% थी।
माना जा रहा है कि लॉकडाउन के कारण प्रदूषण का कम प्रभाव इन शिशुओं की मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली के पीछे मुख्य कारण है। शांत वातावरण और कम वायु प्रदूषण ने शिशुओं के फेफड़ों में हवा को स्वच्छ रखा और प्राकृतिक एंटीबायोटिक की तरह उनकी रक्षा की।
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