नयी दिल्ली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने बजट में किसी राज्य के साथ राजनीतिक आधार पर कोई भेदभाव करने के आरोप को खारिज करते हुए मंगलवार को कहा कि बहुत से राज्य स्वास्थ्य, शिक्षा, शहरी विकास, ग्रामीण रोजगार जैसी योजनाओं (schemes) का केंद्र से मिले पैसे को पूरा खर्च नहीं कर पा रहे हैं बावजूद इसके आवंटन में भेदभाव की शिकायत करते हैं।
सीतारमण ने बजट 2025-26 (Budget 2025-26) पर लोकसभा में तीन दिन चली चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि बजट पर सदस्यों ने व्यापक चर्चा की और इसमें 71 सदस्यों ने बजट से जुड़े विभन्न बिंदुओं काे उठाया। यह बजट ऐसे समय पर आया है जब पूरे विश्व का आर्थिक माहौल बदल रहा है इसलिए इसमें विकासशील अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए सशक्त कदम उठाए गये हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था वास्तविक रूप से 5.6 प्रतिशत है और मौजूदा कीमतों के आधार पर नाै प्रतिशत से ज्यादा है। बजट में कई नयी महत्वपूर्ण योजनाएं और प्रस्ताव हैं और किसानों के लिए विशेष कदम उठाए गये हैं ताकि अन्नदाता का उत्साह बढ़े। वित्तीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 4.4 प्रतिशत है। उन्होंने कहा कि सरकार लगातार बजट में सुधार के कदम उठा रही है। इससे पहले के बजटों में अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए एकल खिडकी व्यवस्था की गई थी और पारदर्शिता को बढ़ावा दिया गया था। राज्यों के साथ चेक एंड बैलेंस पर ध्यान दिया गया है और राज्य स्तर पर स्थितियों में सुधार के लिए कदम उठाए गये हैं। पिछले पांच साल के दौरान बजट तैयार करने, पारदर्शिता लाने और बजट को और ज्यादा विश्वसनीय बनाने के लिए सारे प्रयास हुए हैं। उन्होंने राज्यों से भी अपने राज्य के कर्ज को अच्छी तरह व्यवस्थित रखने के रास्ते पर चलने की सलाह दी है। बेरोजगारी 2017-2018 से 2023-24 के बीच आधी हो गई है। उन्होंने महंगाई को लेकर और खासकर खाद्यान्न को लेकर कहा कि सरकार महंगाई पर नियंत्रण को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है। रिजर्व बैंक को मुद्रा स्फीति दर छह प्रतिशत रखने को कहा गया है और इस पर कड़ी नजर रखी जा रही है।
वित्त मंत्री ने कहा कि कई कारणों से खाने पीने की चीजें महंगी हुई, लेकिन उसके भी समाधान के उपाय किए गये है। इस संबंध में उन्होंने दलहन, तिलहन आदि का उत्पादन बढ़ाने का जिक्र किया। रिजर्व बैंक ने 2025-26 में खुदरा मूल्य स्फीति 4.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) प्रथम में खाद्य मुद्रा स्फीति 6.5 प्रतिशत और संप्रग दो में 11 प्रतिशत थी जिससे उपभोक्ताओं पर बहुत दबाव बढ़ गया था जबकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के समय यह औसतन 5.3 प्रतिशत रहा। उन्होंने कहा कि उज्ज्वला योजना में प्रति सिलेंडर 300 रुपए की सब्सिडी के माध्यम से गरीबों को 503 रुपए में सिलेंडर दिया जा रहा है।
प्रधानमंत्री धनधान्य योजना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इसे सौ ऐसे जिलों में चलाने का फैसला किया गया है जहां कृषि उत्पादकता कम है। उन्होंने खाद्य मुद्रास्फीति का प्रभाव कम करने के लिए भारत दाल, भारत आटा, सस्ती दर पर प्याज और पुष्ट चावल उपलब्ध कराने जैसी योजनाओं का भी जिक्र किया और कहा कि सरकार ने प्याज खरीदा और इसे कम दाम पर लोगों को उपलब्घ कराया जा रहा है। उन्होंने रुपए की गिरावट में वैश्विक और घरेलू जैसे कई कारण बताते हुए कहा कि इन स्थितियों से रुपया प्रभावित होता है। गत अक्टूबर से जनवरी के बीच रुपया अन्य एशियाई मुद्राओं की तुलना में कम गिरा है।
उन्होंने रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के हाल में रुपए को लेकर दिये गये साक्षात्कार का जिक्र किया और कहा कि उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा में भी हिस्सा लिया था। विपक्षी दलों की भी रुपए में गिरावट को लेकर चिंता बजट चर्चा में साफ दिखी है। उन्होंने कहा कि अक्सर डालर के मुकाबले रुपए में गिरावट की बात की जाती है, लेकिन डालर दूसरी मुद्राओं के साथ भी मजबूत हो रहा है। हमेशा डालर की तुलना रुपए से की जाती है जबकि डालर अन्य मुद्राओं की तुलना में मजबूत होता जा रहा है। रुपए की प्रभावी विनिमय दर ज्यादा कम नहीं हुई जबकि रुपए नरम होने से निर्यात को बढावा मिलता है। डॉलर परिसंपत्तियों में कुछ संभावित सुरक्षित निवेश खरीदारी भी है जिसे देखते हुए रुपए में गिरावट ज्यादा चिंता का विषय नहीं है।
श्रीमती सीतारमण ने सार्वजनिक व्यय के पिछले स्तर पर बने रहने का जवाब देते हुए कहा कि बजट में 50.65 लाख करोड़ रुपए का प्रावघान है जो पिछले साल से 2.44 लाख करोड़ रुपए ज्यादा है। पूंजीगत खर्च पिछले साल के 11.11 करोड़ रुपए से बएाकर 11.21 लाख करोड रुपए कर दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार संप्रग के समय पेट्रोलियम उर्वरक और अनाज सब्सिडी के लिए जारी बांडों पर हजारों करोड़ रुपए का ब्याज इस समय चुका रही है बावजूद इसके सरकार में सामाजिक क्षेत्र में आवंटन बढाया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के लिए, कई सदस्यों ने खाद्य सुरक्षा को लेकर चिंता जताई और उनकी इसको लेकर चिंता स्वाभाविक थी। राज्य खाद्य सुरक्षा अधिनियम और बाल पोषण मिडडे मील जैसी योजना के लिए आवंटित धन का उपयाेग कई राज्य नहीं कर पा रहे हैं बावजूद इसके अतिरिक्त पैसा मांग रहे हैं।
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