Geeta Updesh : गुस्से पर काबू पाना मुश्किल लगता है? जानिए श्री कृष्ण गीता में क्या कहते हैं...

Sun, Sep 08 , 2024, 10:47 AM

Source : Hamara Mahanagar Desk

Gita Knowledge : श्री कृष्ण के मुख से निकले गीता के कई श्लोक जीवन का मार्गदर्शन (guide life) करते हैं। कलियुग में अहंकार और क्रोध (Ego and anger) बहुत बढ़ गया है, इस क्रोध पर कैसे काबू पाया जाए, जानिए गीता में श्रीकृष्ण क्या कहते हैं।

 गुस्सा एक ऐसी चीज है जो हर किसी को होती है। हमें लगता है कि ये हमारे हाथ में भी नहीं है कि ये कैसे पैदा होगा।  लेकिन क्रोध पर नियंत्रण करने से मस्तिष्क अधिक सतर्क हो जाता है। जब आप सतर्क होते हैं तो आप बेहतर प्रदर्शन करते हैं। लेकिन, वर्तमान जीवन में गुस्से पर काबू पाना बहुत मुश्किल है। क्रोध एक प्राकृतिक भावना (Anger is a natural emotion) है जो विभिन्न स्थितियों की प्रतिक्रिया में उत्पन्न हो सकती है, लेकिन अगर इसे अनियंत्रित छोड़ दिया जाए तो यह एक विनाशकारी शक्ति भी बन सकती है। अनियंत्रित क्रोध (Uncontrolled anger) रिश्तों में तनाव पैदा कर सकता है, अवसर चूक सकता है और यहां तक ​​कि खुद को या दूसरों को शारीरिक नुकसान पहुंचा सकता है।

धैर्य और संयम का स्तर बहुत तेजी से घट रहा है। नौकरी, करियर, पारिवारिक समस्याएं और धन आपूर्ति जैसी कई स्थितियां लोगों में गुस्से और आक्रामकता की समस्या पैदा कर रही हैं। हर काम अपने मन मुताबिक करना चाहिए और वह भी तुरंत। यदि नहीं, तो क्रोध का दानव आ जाता है और स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है। भगवद गीता (Bhagavad Gita) घोषित करती है कि जो लोग क्रोध से नियंत्रित होते हैं वे राक्षसी प्रकृति के होते हैं और जो क्रोध से मुक्त होते हैं वे दैवीय प्रकृति के होते हैं।

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनात्मन: |
काम: क्रोधस्था लोभस्मादेतत्रयं त्यजेत् ||

अर्थ: आत्मा के लिए आत्म-विनाश के नरक की ओर ले जाने वाले तीन द्वार हैं - काम, क्रोध और लोभ। अत: इन तीनों को त्याग देना चाहिए। साथ ही भगवत गीता में श्रीकृष्ण ने बताया है कि इस पर नियंत्रण क्यों और कैसे किया जाए।

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥

अर्थ: वस्तुओं के बारे में सोचने से व्यक्ति उनमें आसक्त हो जाता है। इस प्रकार उनमें इच्छाएँ उत्पन्न होती हैं और उनकी इच्छाओं में बाधा आती है और क्रोध उत्पन्न होता है। इसलिए इंद्रियों से दूर रहकर कर्म में लीन रहने का प्रयास करें।

क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥

अर्थ : क्रोध व्यक्ति के मन और बुद्धि को नष्ट कर देता है अर्थात वह मूर्ख और मुंहफट हो जाता है। इस प्रकार स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृतिभ्रम मनुष्य की बुद्धि को नष्ट कर देता है और जब बुद्धि नष्ट हो जाती है तो मनुष्य स्वयं को नष्ट कर लेता है। इसलिए व्यक्ति को क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए और अच्छा जीवन जीने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि खुद को नष्ट न करें। क्योंकि हमें यह भी नहीं पता कि मौत कब आएगी या क्या होगा।

Latest Updates

Latest Movie News

Get In Touch

Mahanagar Media Network Pvt.Ltd.

Sudhir Dalvi: +91 99673 72787
Manohar Naik:+91 98922 40773
Neeta Gotad - : +91 91679 69275
Sandip Sabale - : +91 91678 87265

info@hamaramahanagar.net

Follow Us

© Hamara Mahanagar. All Rights Reserved. Design by AMD Groups