झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री सोरेन ने खटखटाया उच्चतम न्यायालय का दरवाजा

Wed, Apr 24, 2024, 04:05

Source : Uni India

नई दिल्ली। झारखंड में कथित भूमि घोटाले (money laundering case) से संबंधित धन शोधन के एक मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की ओर से गिरफ्तारी के बाद करीब तीन माह से न्यायिक हिरासत (judicial custody) में जेल में बंद पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) ने अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर उच्च न्यायालय (High Court) के आदेश पारित करने में देरी का हवाला देते हुए उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) का दरवाजा खटखटाया है।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने झारखंड मुक्ति मोर्चा ने हेमंत सोरेन का पक्ष रखते हुए उनकी अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका पर शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किया।इस पर पीठ ने कहा कि शीघ्र सुनवाई के मामले मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ कोई विचार कर सकते हैं।

सिब्बल ने पीठ के समक्ष 'विशेष उल्लेख' के दौरान कहा कि इस मामले की सुनवाई झारखंड उच्च न्यायालय ने 27 और 28 फरवरी को की थी, लेकिन अभी तक कोई आदेश पारित नहीं किया गया है।पीठ के समक्ष उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश पारित कराने में देरी का मतलब यह होगा कि पूर्व मुख्यमंत्री सोरेन को लोकसभा चुनाव के दौरान जेल में ही रहेंगे। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय की ओर को आदेश पारित करने में देरी के बाद पूर्व मुख्यमंत्री सोरेन ने अनुच्छेद 32 के तहत शीर्ष अदालत के समक्ष याचिका दायर की है।

केंद्रीय जांच एजेंसी ईडी) ने 31 जनवरी 2024 को पूर्व मुख्यमंत्री सोरेन को गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के मद्देनजर उसी दिन उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दिया था।उन्होंने तब राहत की गुहार लगाते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, उनकी याचिका दो फरवरी को खारिज कर दी गई थी। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की विशेष पीठ ने तब (दो फरवरी को) याचिका खारिज करते हुए सोरेन को अपनी जमानत के लिए झारखंड उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने को कहा था।

पूर्व मुख्यमंत्री सोरेन को झारखंड में कथित भूमि घोटाले से संबंधित धन शोधन के एक मामले में केंद्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 31 जनवरी 24 को एक नाटकीय घटनाक्रम के बाद में गिरफ्तार किया था। राज्य की एक विशेष अदालत ने एक फरवरी को उन्हें एक दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था, जिसकी अवधि सामय-समय बढ़ाई गई।

शीर्ष अदालत की पीठ ने दो फरवरी को याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे वरिष्ठ श्री सिब्बल से पूछा था, "आपको उच्च न्यायालय क्यों नहीं जाना चाहिए? अदालतें सभी के लिए खुली हैं।"विशेष पीठ वकील से यह भी कहा था, "उच्च न्यायालय भी संवैधानिक अदालतें हैं। यदि हम एक व्यक्ति को अनुमति देते हैं तो हमें ऐसा सभी देनी होगी।"

 सोरेन की ओर से वरिष्ठ वकील ए एम सिंघवी ने भी दलील दी थी। उन्होंने दलील देते हुए कहा था कि शीर्ष अदालत को मामले पर विचार करने का समवर्ती क्षेत्राधिकार मिला हुआ है। सिब्बल ने कहा था कि यह अदालत हमेशा अपने विवेक का इस्तेमाल कर सकती है। पीठ पर इन दलीलों का कोई असर नहीं पड़ा था और उसने सोरेन की याचिका खारिज कर दी थी।

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