Gudhi Padwa: आज पूरे राज्य में हिन्दू नववर्ष (Hindu New Year) और गुड़ी पड़वा (Gudi Padwa) का उत्साह है। इस मौके पर मुंबई के कई हिस्सों में जुलूस का आयोजन किया गया। पारंपरिक मराठी सजावट (traditional Marathi decorations) और ढोल की आवाज के साथ ये जुलूस खास होते हैं। महिला वर्ग की नौवेरी साड़ी, सजावटी नाक की गांठ, सिर पर रंगीन महाराष्ट्रीयन पगड़ी, आंखों पर रेबन का चश्मा और बुलेट पर सवारी। वहीं दूसरी ओर इन शोभा यात्राओं (Shobha Yatra) में ढोल-झांजों की ध्वनि के साथ कुर्ता-पायजामा पहने पुरुष पूरे माहौल का नजारा ले रहे हैं। लेकिन मुंबई में जुलूसों की शुरुआत कैसे हुई? और आइए जानें इसकी शुरुआत किसने की।
मराठी संस्कृति के संरक्षण की प्रेरणा
मराठी संस्कृति (Marathi culture) को संरक्षित करने के इरादे से और राजनीति से प्रेरित होकर, मराठी नव वर्ष के अवसर पर मुंबई के मराठी इलाकों में वर्ष 1999 में गुड़ी पड़व्या जुलूस शुरू हुए। इसकी शुरुआत डोंबिवली में श्री गणेश मंदिर संस्थान से हुई। इस संस्थान के अध्यक्ष आबासाहेब पटवारी ने यह अवधारणा प्रस्तुत की। दरअसल, ये जुलूस डोंबिवली से शुरू हुआ। ये जुलूस डोंबिवली में शुरू हुए क्योंकि मुंबई के गिरगांव, पराल, दादर के मराठी नागरिक इस क्षेत्र में चले गए।
ठाणे में भी जुलूस शुरू हो गए
फिर अगले साल साल 2000 में ठाणे के श्री कौपिनेश्वर मंदिर ने भी ऐसी ही एक शोभा यात्रा निकाली। इसके बाद यह परंपरा चलती रही। साढ़े तीन मुहूर्तों में से एक गुड़ी पड़वा के दिन देवी-देवताओं का रूप धारण कर यात्राएं शुरू हुईं। इसमें ढोल-ताशे आदि पारंपरिक वाद्ययंत्र बजाकर जुलूसों की शुरुआत की गई।
यात्रा में आधुनिक परिवर्तन हुए हैं
उसके बाद हर साल इसमें नई चीजें शामिल की गईं। तदनुसार, इन जुलूसों में बाल शिवाजी अपने छोटे-छोटे मौलों में, महिलाओं द्वारा नवारी साड़ियाँ, पूर्ण अंगार श्रृंगार और पुरुषों द्वारा कुर्ता-पायजामा और फ़ेटे जैसी मराठा पोशाकें शामिल थीं। इसके बाद जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता गया इसमें आधुनिक बदलाव भी देखने को मिला। तदनुसार, परंपरा को कहीं भी छेड़े बिना, बुलेट जैसी मर्दाना पहचान वाली साइकिल पर महिलाएं, पारंपरिक पोशाक में साड़ी पहनने वाली और आंखों पर चश्मा लगाने वाली महिलाएं इन जुलूसों में अपना अलग अंदाज दिखाने लगीं।
राजनीतिक प्रेरणा
लेकिन राजनीतिक हालात ने भी इस जुलूस को प्रेरित किया। क्योंकि 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद मुंबई में हुए दंगे और हिंदुत्व का उदय। उसी मुंबई शिव सेना द्वारा लागू किए गए मराठीपन और हिंदू संस्कृति के एजेंडे के कारण, वह ऐसे जुलूसों की राह पर आ गई।
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Tue, Apr 09, 2024, 12:10