देश का पहला पेडियाट्रिक लिविंग डोनर इंटेस्टाइन ट्रांसप्लांट
14 घंटों तक चली यह जटिल सर्जरी
मुंबई: कजाकिस्तान के 9 वर्षीय बच्चे को एक नया जीवन मुंबई में मिला है। यहां के एक निजी अस्पताल में देश का पहला पेडियाट्रिक लिविंग डोनर इंटेस्टाइन(Country's first pediatric living donor) ट्रांसप्लांट हुआ है। 14 घंटों के इस जटिल ऑपरेशन के बाद बच्चा अब सामान्य जीवन जी सकेगा। बता दें कि अक्तूबर 2022 में 9 वर्षीय बेकारिस ज़ूमाबेक (Bacaris Zumabek) को मिडगट वॉल्वुलस बीमारी होने का पता चला था। यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें इंटेस्टाइन अपने आप मुड़ जाती है। उस दौरान उसका इलाज कर रहे डॉक्टरों ने एपेंडिक्स के साथ छोटी आंत के भाग को सर्जरी के माध्यम से काट देने का फैसला किया था।
बच्चे की बिगड़ती हालत को देखते हुए उस पर तुरंत सर्जरी की गई, जिसमें उसकी छोटी आंत की एक महत्वपूर्ण पोज़िशन और बड़ी आंत के अन्य हिस्से को निकाल दिया गया, जिसकी वजह से शॉर्ट गट सिंड्रोम (short gut syndrome) नामक समस्या पैदा हो गई। मरीज़ को टोटल पेरेंटेरल न्यूट्रिशन पर रखा गया और तब से उसका वज़न लगातार कम होता गया। दिसंबर 2022 में उसे मुंबई के एक निजी अस्पताल में रेफर किया गया।
विकल्प खत्म होने के बाद आया भारत
ग्लोबल अस्पताल के पीडियाट्रिक गैस्ट्रो एंटरोलॉजिस्ट (Pediatric Gastroenterologist) डॉ. ललित वर्मा ने बताया कि बच्चे को तब रेफर किया गया था, जब उसके देश में उपचार के सभी विकल्प खत्म हो गए थे। उसका वज़न बहुत कम हो गया था। अस्पताल ने लिविंग डोनर इंटेस्टाइन ट्रांस्प्लांट के बारे में उसके परिवार के साथ काउंसलिंग की और उसके मामा अंग दान करने के लिए आगे आए। 30 जनवरी को उस पर लिविंग डोनर इंटेस्टाइनल ट्रांसप्लांट ऑपरेशन किया गया। इस ट्रांसप्लांट के बाद उसकी सेहत में तेजी से सुधार होने लगा। डायरेक्टर ऑफ लिवर, पैंक्रियाज, इंटेस्टाइन ट्रांसप्लांट प्रोग्राम के डॉ. गौरव चौबल ने बताया कि बच्चे बेकारिस का केस बहुत ही जटिल था, क्योंकि जब उसे हमारे पास लाया गया, तब वह बहुत ज़्यादा कुपोषित था और उसे कई इंफेक्शन्स हो गए थे।
एक बच्चा होने के कारण उस पर बार-बार इन्वेसिव प्रोटोकॉल बायोप्सी नहीं करना चाहते थे और इसलिए हमने बच्चे के मामा की जांघों से उसकी जांघों पर एक फ्री फ्लैप ग्राफ्ट इम्प्लांट करवाया। इस रिमोट फ्री फ्लैप ग्राफ्ट से प्रारंभिक अस्वीकृति की नॉन-इन्वेसिव रिमोट मॉनिटरिंग संभव हो पाती है। उन्होंने बताया कि देश में लिविंग डोनर ट्रांसप्लांट में ऐसा पहली बार है, जब इसका प्रयास किया गया है। सर्जरी बहुत जटिल थी और फ्री फ्लैप ग्राफ्टिंग के कारण सर्जरी 14 घंटों तक चली। मरीज़ की सेहत में सुधार हो रहा है, वह अब मुंह के ज़रिए आहार ले पा रहा है।
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Sat, Feb 25 , 2023, 10:49 AM