Offering to Goddess Chandraghanta : नवरात्रि के तीसरे दिन (24 सितंबर) चंद्रघंटा माता की पूजा की जाती (Goddess Chandraghanta is worshipped) है। देवी के माथे पर अर्धचंद्र होने के कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी (Goddess Chandraghanta) कहा जाता है। देवी की कांति स्वर्ण के समान है, दस भुजाओं वाली यह देवी प्रत्येक हाथ में शस्त्र धारण करती हैं। चंद्रघंटा माता का वाहन सिंह है और सच्चे मन से इस देवी की पूजा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है। 24 सितंबर, 2025 बुधवार है और यह नवरात्रि उत्सव का तीसरा दिन है। तीसरे दिन का शुभ रंग नीला है, और नीला रंग शांति और समृद्धि का प्रतीक है। इसलिए भक्त तीसरे दिन नीले रंग के वस्त्र पहनते हैं ताकि माँ का आशीर्वाद उन पर बना रहे।
चंद्रघंटा देवी पूजा विधि
चंद्रघंटा देवी की पूजा का मंत्र (माँ चंद्रघंटा मंत्र)
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता.
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्.
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्.
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्.
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्.
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
मां चंद्रघंटा देवी को लगाएं ये भोग
नवरात्रि के तीसरे दिन चंद्रघंटा देवी की पूजा की जाती है और उन्हें प्रसन्न करने के लिए दूध या दूध से बना प्रसाद चढ़ाना चाहिए। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, चंद्रघंटा देवी को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रि के तीसरे दिन खीर का भोग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि अगर दूध या दूध से बना प्रसाद चढ़ाया जाए तो देवी चंद्रघंटा भक्तों के सभी दुख दूर कर देती हैं।
माता चंद्रघंटा की कथा (माँ चंद्रघंटा कथा)
पौराणिक कथा के अनुसार, महिषासुर नाम के राक्षस ने पूरे ब्रम्हांड को परेशान कर रखा था । उसने भगवान इंद्र का सिंहासन भी छीन लिया था। वह स्वर्ग पर भी राज करना चाहता था। इससे सभी देवता चिंतित हो गए। ये देवता त्रिदेवों अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास गए। महिषासुर के बारे में सुनते ही त्रिदेव क्रोधित हो गए। क्रोध की इसी अग्नि में उनके मुख से एक ऊर्जा निकली, जिससे माता चंद्रघंटा का जन्म हुआ।
महिषासुर का अंत करने के लिए भगवान शंकर ने माता चंद्रघंटा को त्रिशूल और भगवान विष्णु ने उन्हें अपना सुदर्शन चक्र दिया। अन्य देवताओं ने भी माता को अपने अस्त्र-शस्त्र दिए। इसके साथ ही भगवान इंद्र ने माता को एक घंटा दिया। इन अस्त्रों की सहायता से माता चंद्रघंटा ने महिषासुर का वध किया और सभी देवताओं की रक्षा की।
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Wed, Sep 24 , 2025, 02:26 PM