Dr Mohan Bhagwat: भारत की शिक्षा प्रणाली पर अभी भी औपनिवेशिक प्रभाव; भागवत ने जताई दार्शनिक विचारों पर आधारित पाठ्यक्रम की ओर ले जाने की आवश्यकता!

Mon, Jul 28 , 2025, 07:49 AM

Source : Hamara Mahanagar Desk

कोच्चि: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली औपनिवेशिक युग की सोच के प्रभाव को दर्शाती है, जिसे भारतीय दार्शनिक विचारों पर आधारित पाठ्यक्रम की ओर ले जाने की आवश्यकता है। डॉ. भागवत अमृता आयुर्विज्ञान संस्थान में आयोजित एक शिक्षा सम्मेलन (ज्ञान सभा) में बोल रहे थे। उन्होंने कहा, "हमारा देश भारत है। हमें 'इंडिया' शब्द का प्रयोग बंद करके 'भारत' शब्द का प्रयोग शुरू करना चाहिए। हमें अपने राष्ट्र को भारत कहना चाहिए और दूसरों को भी यही समझाना चाहिए।"

इस सम्मेलन में केंद्रीय और राज्य शैक्षणिक संस्थानों, विश्वविद्यालयों, शैक्षणिक एजेंसियों और निजी शैक्षणिक उद्यमियों ने भाग लिया। देशभर के लगभग 200 संस्थानों के कुलपति और निदेशक इस कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं, जिसका विषय "विकसित भारत के लिए शिक्षा" है। डॉ. भागवत ने कहा, "भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली औपनिवेशिक विचारधाराओं के दीर्घकालिक प्रभाव से प्रभावित है। भारतीय दार्शनिक चिंतन पर आधारित प्रणाली की ओर परिवर्तन आवश्यक है। इस तरह के बदलाव के लिए एक गहरी जड़ें जमाए हुए और यथार्थवादी भारतीय विश्वदृष्टिकोण की आवश्यकता है।"

उन्होंने कहा, "शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वालों को उत्कृष्टता का प्रदर्शन करना चाहिए, आदर्श बनना चाहिए और एक सामंजस्यपूर्ण कार्य वातावरण को बढ़ावा देना चाहिए जो दूसरों को अनुसरण करने के लिए प्रेरित करे।" इस बीच, केरल के शिक्षा मंत्री एवं मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता वी. शिवनकुट्टी ने आरएसएस प्रमुख के एर्नाकुलम दौरे पर आपत्ति जतायी और पांच राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की भागीदारी पर चिंता व्यक्त की।

उन्होंने सोशल मीडिया मंच एक्स पर लिखा, "इस आयोजन को लेकर वास्तविक चिंताएं हैं। शिक्षा क्षेत्र को किसी विशिष्ट विचारधारा या राजनीतिक एजेंडे के तहत चलाने के प्रयासों को किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता। शिक्षा सुलभ और धर्मनिरपेक्ष बनी रहनी चाहिए। हालांकि, यह चिंताजनक है कि कुछ संगठन अपने हितों के लिए शिक्षा नीतियों में हेरफेर करने की कोशिश कर रहे हैं।" उन्होंने कहा, "विश्वविद्यालयों को स्वतंत्र और निष्पक्ष रहना चाहिए। अकादमिक उत्कृष्टता और अनुसंधान के लिए प्रतिबद्ध संस्थानों का इस्तेमाल राजनीतिक हितों के लिए नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।"

उन्होंने कहा कि केरल सरकार राज्य में सार्वजनिक और उच्च शिक्षा दोनों क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। मंत्री ने कहा, "सरकार का लक्ष्य एक ऐसी शिक्षा प्रणाली सुनिश्चित करना है जो संविधान के मूल मूल्यों और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कायम रखे। केरल सरकार और समाज, भगवाकरण के प्रयासों का विरोध करने और शिक्षा क्षेत्र के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बनाए रखने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएंगे।"

गौरतलब है कि इस तीन दिवसीय सम्मेलन में राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत लगभग 80 प्रमुख शिक्षाविद् भाग ले रहे हैं। भारतीय ज्ञान परंपराओं, भारतीय भाषाओं, युवाओं में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने वाली आधुनिक शिक्षा प्रणालियों, जीवन मूल्यों, नागरिक जागरूकता और पर्यावरण शिक्षा जैसे विषयों पर चर्चाएं हो रही हैं।

इस कार्यक्रम का आयोजन शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा किया जा रहा है, जो पिछले 20 वर्षों से शिक्षा प्रणाली में भारतीय दृष्टिकोण और स्वदेशी विषयवस्तु को बढ़ावा देने और एकीकृत करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है। संगठनात्मक उपलब्धियों को प्रदर्शित करने के अतिरिक्त बैठक में न्यास द्वारा की गयी पहलों का भी मूल्यांकन किया जाएगा, जैसे कि ज्ञानोत्सव और ज्ञान महाकुंभ, जो शिक्षा में भारतीय मूल्यों को पुनः स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध शैक्षणिक संस्थानों को एक साथ लाने के लिए पिछले पांच वर्षों में आयोजित किए गए हैं।

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