Rajasthan High Court: राजस्थान उच्च न्यायालय ने मेयर के निलम्बन को सही ठहराया!

Wed, Jul 16 , 2025, 08:10 AM

Source : Hamara Mahanagar Desk

जयपुर: राजस्थान में राजस्थान उच्च न्यायालय ने जयपुर नगर निगम (हेरिटेज) की महापौर मुनेश गुर्जर के निलंबन को सही ठहराया है। उच्च न्यायालय ने मंगलवार को सुनाये गये फैसले के तहत राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह यह सुनिश्चित करते हुए तीन महीने की अवधि में न्यायिक जांच पूरी करे कि एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि अनिश्चितकालीन निलंबन की स्थिति में न रहे, और जांच निष्पक्ष रूप से, बिना न्यायालय की टिप्पणियों से प्रभावित हुए पूरी की जाए।

न्यायालय ने कहा कि एक जनप्रतिनिधि से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने पद की गरिमा को बनाए रखे और मर्यादित व्यवहार करे। भ्रष्टाचार जैसे गंभीर अपराध में लिप्त होना अत्यंत लज्जाजनक है, विशेष रूप से तब जब यह कृत्य किसी उच्च पदस्थ सार्वजनिक व्यक्ति द्वारा किया गया हो। चार अगस्त 2023 को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने जयपुर नगर निगम (हेरिटेज) की महापौर के आवास पर महापौर मुरेश गुर्जर के पति को दो लाख की रिश्वत मांगते हुए पकड़ा। 

यह राशि पट्टे जारी करने के बदले में मांगी जा रही थी। इसमें जांच में महापौर मुनेश गुर्जर की संलिप्तता भी सामने आई, जिसके आधार पर उनके विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 2018 की धारा सात ए एवं भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी के तहत 17 सितंबर 2024 को आरोप-पत्र दाखिल किया गया। इसके पश्चात 23 सितंबर 2024 को स्थानीय स्वशासन विभाग द्वारा उन्हें निलंबित कर दिया गया।

मुनेश गुर्जर ने अपने निलंबन को उच्च न्यायालय में चुनौती दी और तर्क दिया कि उन्हें अपनी बात रखने का उचित अवसर नहीं दिया गया और जो नोटिस उन्हें भेजा गया, वह डिजिटल रूप से हस्ताक्षरित नहीं था। न्यायालय ने इन तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि तकनीकी आपत्तियों के आधार पर गंभीर आरोपों को दरकिनार नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि वैध प्राधिकारी के हस्ताक्षर युक्त मैनुअल नोटिस भी कानूनी रूप से मान्य होते हैं और याचिकाकर्ता को लगाए गए आरोपों की पूरी जानकारी थी। उन्होंने जवाब देने के बजाय केवल प्रक्रिया में बाधा डालने का प्रयास किया और तकनीकी आधार पर समय बर्बाद किया।

न्यायालय ने कहा कि निलंबन कोई दंड नहीं है, बल्कि यह एक एहतियाती कदम है, विशेष रूप से तब जब गंभीर आरोपों की जांच चल रही हो। न्यायालय ने कहा कि प्रस्तुत तथ्यों, चार्जशीट और एसीबी की रिपोर्ट के आलोक में यह स्पष्ट है कि राज्य सरकार का निर्णय न्यायसंगत था और उसमें हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं बनता। न्यायालय ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करता है और जनविश्वास को क्षति पहुंचाता है, खासकर तब जब यह अपराध किसी जनप्रतिनिधि द्वारा किया जाए।

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