कोलकाता/नयी दिल्ली। तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा (Trinamool Congress MP Mahua Moitra) ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण(एसआईआर) को अनिवार्य बनाये जाने संबंधी चुनाव आयोग के 24 जून के आदेश को उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) में चुनौती दी है।
पश्चिम बंगाल में कृष्णनगर से सांसद ने चुनाव आयोग के आदेश को असंवैधानिक तथा भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(ए), 21, 325 और 326 के साथ-साथ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के प्रावधानों के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करार दिया है।
सुश्री मोइत्रा ने अपने एक्स हैंडल पर लिखा, “बिहार में एसआईआर करने के लिए चुनाव आयोग की अधिसूचना को चुनौती देते हुए और बंगाल सहित अन्य राज्यों में इसे लागू करने पर रोक लगाने की मांग करते हुए उच्चतम न्यायालय में रिट याचिका दायर की है।”
उन्होंने आगे कहा , “यह पहली बार है जब चुनाव आयोग ने इस तरह की कवायद शुरू की है, जहां पहले से ही मतदाता सूची में सूचीबद्ध और पिछले चुनावों में मतदान करने वाले मतदाताओं से अब अपनी पात्रता को फिर से सत्यापित करने के लिए कहा जा रहा है।” इस कदम से बहुत से मतदाताओं को बड़े पैमाने पर मताधिकार से वंचित होना पड़ सकता है, जिससे लोकतांत्रिक सिद्धांत और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का संचालन कमजोर हो सकता है।”
तृणमूल कांग्रेस सांसद ने चुनाव आयोग को अन्य राज्यों में इसी तरह के संशोधन अभियान को आगे बढ़ाने से रोकने के लिए दिशानिर्देश भी मांगा है। उनका दावा है कि चुनाव आयोग ने अगस्त 2025 से पश्चिम बंगाल में इसी तरह की कवायद शुरू करने के निर्देश पहले ही जारी कर दिए हैं।
अधिवक्ता नेहा राठी के माध्यम से दायर याचिका में तर्क दिया गया है कि आयोग के आदेश में मतदाता सूची में नाम बनाए रखने या शामिल करने के लिए माता-पिता की नागरिकता का प्रमाण साबित करने वाले दस्तावेज़ प्रस्तुत करना आवश्यक है।
याचिका में कहा गया है कि इन आवश्यकताओं का संविधान के अनुच्छेद 326 या आरपी अधिनियम के किसी भी प्रावधान में उल्लेखित नहीं हैं, और इसके कारण पात्र मतदाताओं के समक्ष मुश्किलें होंगेी।
याचिका में यह भी कहा गया है कि चुनाव आयोग के आदेश में आधार और राशन कार्ड जैसे आम तौर पर स्वीकार किए जाने वाले पहचान प्रमाणों को शामिल नहीं किया गया है, जिससे मतदाताओं , विशेषकर ग्रामीण और हाशिए के समुदायों पर बोझ बढ़ रहा है । बिहार से वर्तमान क्षेत्रीय रिपोर्ट बताती है कि इन दस्तावेज़ आवश्यकताओं के कारण लाखों मतदाताओं को मताधिकार से वंचित होने का खतरा है।
इससे पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गुरुवार को एसआईआर प्रक्रिया के तहत नए दिशा-निर्देशों की कड़ी आलोचना की और आरोप लगाया कि इसका उद्देश्य 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले पश्चिम बंगाल को लक्ष्य करना है। उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव आयोग पर भाजपा के एजेंट के रूप में काम करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा , “यह लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है। भारत 1947 में स्वतंत्र हुआ था। वर्ष 1987 से 2004 के बीच पैदा हुए लोगों को क्यों निशाना बनाया जा रहा है? मुझे समझ नहीं आता।”
गौरतलब है कि गत 24 जून को चुनाव आयोग ने इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले बिहार में मतदाता सूचियों के एसआईआर की घोषणा की है। इसके तहत मतदाताओं को अपनी जन्म तिथि और जन्म स्थान को सत्यापित करने के लिए जन्म प्रमाण पत्र या पासपोर्ट जैसे 11 स्वीकृत दस्तावेजों में से एक जमा करना आवश्यक है। एक जुलाई, 1987 से पहले जन्मे लोगों को केवल अपने स्वयं के दस्तावेज़ प्रस्तुत करने की आवश्यकता है , हालांकि एक जुलाई 1987 और दो दिसंबर 2004 के बीच जन्मे लोगों को माता-पिता के दस्तावेज भी जमा करने होंगे, जबकि दो दिसंबर 2004 के बाद जन्मे व्यक्तियों को माता-पिता दोनों के दस्तावेज देने होंगे।
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Sun, Jul 06 , 2025, 04:14 PM