आयुर्वेद के अनुसार दही (Curd) को भारी और चिकना पदार्थ माना जाता है, जो शरीर में पित्त और कफ दोनों दोषों को बढ़ा सकता है। खासकर अगर दही का सेवन गलत समय पर, गलत मात्रा में और गलत तरीके से किया जाए तो यह शरीर के लिए हानिकारक भी हो सकता है।
दही गर्मियों में थोड़ी ठंडक महसूस करने के लिए खाया जाता है, लेकिन दही का स्वरूप गर्म होता है। जिससे शरीर में कई स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
चूंकि दही की प्रकृति गर्म होती है, इसलिए यह शरीर में कफ और पित्त दोष को बढ़ा सकता है। पित्त दोष के लक्षणों में सीने में जलन, त्वचा का लाल होना, आंखों में जलन, चिड़चिड़ापन या चिड़चिड़ापन और नींद न आना शामिल हो सकते हैं।
दही पित्त पथरी को बढ़ा सकता है। इसके अलावा, दही कफ दोष को भी बढ़ा सकता है, जिससे रक्त जमाव, जीभ का सफेद होना, भोजन पचाने में समस्या और सुबह उठने में समस्या हो सकती है।
दही कफ दोष कैसे बढ़ाता है?
दही शरीर में बलगम बढ़ाता है, जिससे साइनस या कंजेशन जैसी श्वसन संबंधी समस्याएं बढ़ सकती हैं। आयुर्वेद में दही खाना, विशेषकर रात में, वर्जित माना गया है, क्योंकि यह पाचन क्रिया को धीमा कर देता है और कफ दोष को बढ़ा सकता है।
दही पित्त दोष कैसे बढ़ाता है?
आयुर्वेद में दही को गर्म वीर्य माना गया है। इसका मतलब यह है कि दही का मूल गुण गर्मी है। इससे शरीर में गर्मी बढ़ सकती है, जो पित्त दोष का कारण बन सकती है। दही अम्लीय होता है, जो पित्त पथरी का कारण बन सकता है। इससे एसिडिटी, त्वचा में जलन, मुंहासे और सिरदर्द जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।
दही खाने का सही समय और तरीका -
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Sat, May 24 , 2025, 01:47 PM