पौराणिक कथा (mythology) के अनुसार एक समय की बात है जब महादेव और माता पार्वती का विवाह नहीं हुआ था. माता पार्वती (Mata Parvati) महादेव से विवाह करना चाहती थीं लेकिन तपस्या में डूबे भगवान शिव का ध्यान उनकी ओर नहीं गया. माता पार्वती की इस उलझन को देख कामदेव वहां आ पहुंचे और उन्होंने महादेव की तपस्या भंग करने के लिए उनपर पुष्प बाण चला दिया. इस बाण के कारण महादेव की आंखें खुल गईं और उनके क्रोध से कामदेव (Kamadev) अग्नि में भस्म हो गए. इसके बाद महादेव की दृष्टि माता पार्वती पर गई. माता पार्वती की इच्छा पूरी हुई और भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह रचा लिया. कामदेव के अग्नि में भस्म हो जाने के बाद शिव शंकर को अनुमान हुआ कि कामदेव निर्दोष थे. इसके बाद माता पार्वती के पूर्व जन्म की कहानी जानकर उन्हें कामदेव के लिए और ज्यादा सद्भाव जागा. ऐसे में महादेव ने कामदेव को एकबार फिर जीवित कर दिया और उन्हें अशरीरी बना दिया. इस दिन लोग फाल्गुन मास पर होलिका दहन कर रहे थे. इसी होलिका में कामदेव की वासना की मलिनता जलकर प्रेम के रूप में प्रकट हुई और कामदेव का अशरीरी भाव से सृजन हुआ जिसका सभी ने जश्न मनाया. इसके बाद से ही होली का त्योहार मनाया जाने लगा. गुलाल से होली खेली गई और हर ओर मधुर संगीत फैल गया.
सभी मतभेदों को भुलाकर मनाएं ‘होली’
भारतीय संस्कृति में त्योहारों एवं उत्सवों की आदि काल से ही बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस देश में मनाये जाने वाले सभी त्योहारों के पीछे की भावना मानवीय गरिमा को समृद्धि प्रदान करना होता है, और यही कारण है कि भारतवर्ष में मनाये जाने वाले सभी त्योहारों एवं उत्सवों को सभी धर्मों के लोग बड़े आदर के साथ मिलजुल कर मनाते हैं। होली का त्यौहार, भारत में जितने भी त्योहार मनाये जाते हैं, उन सभी से विलक्षण है। इस त्यौहार को लेकर देश के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न भिन्न मान्यतायें हैं और शायद यही विविधता में एकता, भारतीय संस्कृति का परिचायक भी है। लोग इस त्यौहार को खूब हास-परिहास के साथ मनाते हैं और उस दिन चारोऔर हुड्दंग मचा रहता है और लोग एक-दो को गुलाल-अबीर से रंग डालते हैं तथा रात्रि को होलिका जलाते हैं। किन्तु प्रश्न यह उठता हैं की आखिर इस त्योहार को इस दिन तथा इस रीति से मनाने के पीछे का रहस्य क्या है? उत्तर भारत के तरफ होलिकादहन को श्री कृष्ण द्वारा पूतना नामक राक्षसी के वध दिवस के रुप में मनाया जाता है तो दक्षिण भारत की तरफ ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया था ओर उनकी राख को अपने शरीर पर लगाकर तांडव नृत्य किया था। तत्पश्चात् कामदेव की पत्नी रति के दुख से द्रवित होकर भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया, जिससे प्रसन्न होकर देवताओं ने रंगों की वर्षा की। इसी कारण होली की पूर्व संध्या पर दक्षिण भारत में अग्नि प्रज्ज्वलित कर उसमें गन्ना, आम की बौर और चन्दन डाला जाता है। यहाँ गन्ना कामदेव के धनुष, आम की बौर कामदेव के बाण, प्रज्ज्वलित अग्नि शिव द्वारा कामदेव का दहन एवं चन्दन की आहुति कामदेव को आग से हुई जलन हेतु शांत करने का प्रतीक है। ऐसी अनेकानेक कथाएँ होली के विषय में हमें सुनने को मिलेगी किन्तु हमें मुख्य रूप से यह समझना चाहिए की होली की हर कथा में एक समानता है कि उसमें ‘असत्य पर सत्य की विजय’और ‘दुराचार पर सदाचार की विजय’का उत्सव मनाने की बात कही गई है। अतः उपरोक्त कथा-सार को पढकर बुध्दिमान लोग समझ सकते हैं कि इसका शब्दार्थ लेना युक्ति-संगत नहीं है अपितु भावार्थ अथवा लक्षणार्थ लेना ही विवेक-सम्मत है क्योंकि केवल लकड़ी और कंडों के दहन से तो सभी अनिष्टों का नाश हो नहीं सकता, न ही कभी ऐसा हुआ है। वास्तव में तो लकड़ी और कंडे, हमारे स्वभाव तथा कर्मों में जो दुख देने वाली आदतें हैं, जो कटुता, शुष्कता, क्रूरता तथा विकार रूपी झाड-झंखाड़ हैं, उनके प्रतीक हैं और अग्नि ‘योगाग्नि’ का प्रतीक है। अतः बुरे संस्कारों, नास्तिकता तथा अभिमान रूप होलिका इत्यादि को परमात्मा रूप दिव्य अग्नि की पाप-दह शक्ति में होम कर देना अथवा योगाग्नि में भस्म कर देना ही ‘होलिका-दहन’है। पुनश्च, यह सोचने की बात है कि लकड़ी और कंडों को जलाने से तो ‘पापात्मा राक्षसी’; का नाश तो नहीं होगा क्योंकि वेह राक्षसी तो हमारे मन में बैठी हुई आसुरी वृत्तियों तथा पापजनक कर्मों की ही सूचिका है। अतः हम ज्ञान-रंग से एक-दूसरे को रंगकर, मन के कुभावों तथा कुसंस्कारों का कचरा दग्ध कर दें यही होली और होलिकोत्सव का वास्तविक रहस्य है।
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Sat, Mar 23 , 2024, 08:56 AM